Tuesday, July 10, 2007

Thursday, July 5, 2007

Hindi Poems

Hindu Ki Paribhaasha

tan se hindu main se hindu,
chintan hindu manthan hindu !
darpan hindu dhadkan hindu,
hindu hindu hindu hindu!!
hindu sindhu ka bindu hun,
hain garv mujhe hain garv mujhe!
hain garv mujhe, main hindu hun.









गोधरा (गुजरात) में अयोधया से लौट रहे राम सेवकों एंव हिन्दु महिलाओं
व नीरीह बच्चों को जिन्दा जलाने

वाले दुष्टों को चेतावनी…॥


गोधरा के घातियों , राष्टृ द्रोही पापीयों,
राष्टृ रूपी सिहँ को, नीदं से ना तुम जगाओ।
अपने घर को आग देकर , आग से ही खेलने की आदतों से बाज आओ।
माँ भारती के दूध का , फ़िर से तुमको वास्ता है,
मान जाओ मान जाओ ।
राम मन्दिर का प्रशन तो , राष्टृ का सम्मान है,
राष्टृ को सम्मान देकर , राष्टृ भक्त्ती तुम दिखाओ।
यह मुक्कदस वक़्त तुमको इन्शा अल्लाह ने दिया है,
ऐ काजियों , ऐ हाजियों , लाभ तुम इसका उठाओ।
राम मन्दिर के भवन की तामीर में सहयोग करके ,
दुष्ट बाबर का लगाया , दाग माथे से मिटाओ।
वरना इस अभियान का तुमको नहीं अनुमान है,
मात्र मन्दिर मा नहीं , ये राष्टृ का उत्थान है।
निशचर हीन धरा करने , ये राम का सन्धान है,
है सन्तमण्डल जामवन्त, जिस पे हमको मान है
लो आखँ को तुम खोल अपनी, धयान से पहचान लो,
ये 'समरथ' का सारथी, लकां दहन में महारथी,
'बजरगं दल' के रूप में , यह वही हनुमान है।।
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कविता

जीना उसका जीना है, जो तान के सीना जीता है,

यही राम की रामायण हैं, यही कृष्ण की गीता हैं,

लिखा है यही पुराणों में, ओर वेदो का है सार यही,

सत्य सनातन, नविन पुरातन,एक पते की बात यहीं,

जब तक सत्य के साथ साथ , शक्त्ति का सधांन नही होगा,

सत्य शराफ़त सज्ज्न्ता का, तब तक सम्मान नही होगा,

नदियां के अलग अलग कोंने, मिल सकते नही मिलाने से,

रावन दुर्योधन दु:शासन ना समझेंगे समझाने से,

इसलिये बदल दो नितियों को, मन मे कड़वाहट भरने दो,

फ़ड़कने दो भुजाओं को, सीनों को आज मचलने दो,

बनने दो सिहं स्वर अपना ,वाणी को आज गरजने दो,

आने दो आँधी,भुकम्प, बाढ़, बिजली को आज कड़कने को,

घिरने दो घनघोर घटाओं को,बदली को आज उमड़ने दो,

सागर,झील, नदि, नालों को, फ़िर से आज उफ़नने दो,

हिलने दो नभ धरा दिगन्त,हिमगिरी को आज धधकने दो,

जलने दो भीषण दावानल , कण कण को आज सुलगने दो,

झड़ने दो कलश,कंगूरो को, महराबों को आज चटकने दों,

दहने दो दीवारों को, नीवों को आज धसकने दों,

बजने दो बिगुल लड़ाई का,गाण्डीव को तनने दो,

ललकारों पाक चीन को तुम , मन के अरमान निकल ने दो,

नेफ़ा लद्दाख के दर्रों में , फ़िर से संगीने सजने दो,

रण बाँकुरे वीरों को,फ़िर से सीमा पर डटने दो,

बड़ने दो सेनाओं को, पाँचजन्य को बजने दो,

हर-2 महादेव का नारा ,फ़िर से आज गरज ने दो,

श्री कृष्ण के श्री मुख से,गीता फ़िर आज उचरने दो,

कर्तव्य विमुख अर्जुन को फ़िर से, कर्म के पथ पर बढ़ने दो,

होने से भिष्म प्रतिज्ञाएं, सशंय को आज निकलने दो,

चलने दो तीर कमानों को, तेगों को आज ख़नकने को,

बजने दो टंकार धनुषों की, घोड़ो की टाप थथकने दो,

होने दो चिघाँड़ हाथियों की, भालों से भाले भिड़ने दो,

तोप, तीर तलवारों को, फ़िर से आग उगलने दो,

होने दो अब धाँय धाँय , गड़ गड़ गोले दगने दो,

धूल धुएँ के शोलों से, फ़िर से आकाश धुधंलने दो,

कटने दो शीश कटारों से, लाशों से धरती पटने दो,

बहने दो शोणित की धारा,लाखों चित्कार निकलने दो,

मारों जितने मर सकते हैं,घायलों को आज तड़फने दो,

होने से करुण क्रन्दन को, हा-हाकार हुकरने दो,

होने दो सूनी गोदों को,माँगो को आज उजड़ने दो,

कहीं कुरुक्षेत्र, कहीं पानीपत , कहीं हल्दीघाटी बनने दो,

साधू सन्त श्रावकों को भी,मठों से आज निकलने दो,

कसके लँगोटा , लेकर सोटा, मैदानें जँग उतरने दो

बहनों को भी दुर्गा बनकर ,फ़िर से शेरों पर चढ़ने दो,

बन जाने दो काली उनकों , दुष्टों को आज मसलने दो,

मताओं क्या हो गया तुम्हें, जनती हो शूक सियारों को,

राम, कृष्ण ओर अर्जुन को, फ़िर से गोदी में पलने दो,

लगने दो रोली माथों पर, रक्षा सुत्रों को बन्धने दो,

पिता पुत्र ओर पतियों को, लेकर तेग निकलने दो,

मर जाने दो मिट जाने दो, लाठी गोली खाने दो,

मिट्टी के नशवर पुतलों को, काम देश के आने दो,

जगती के कोनें कोनें में, भीषण कोहराम मचादों तुम,

काँप उठे धरती अम्बर, सारा ब्र्म्हाण्ड हिला दो तुम,

थर थर काँपे नील गगन , दुष्टों की सांसे थम जायें,

हो जाये तर पसीनें से, खून रगों में जम जाये,

फिर करना बात शान्ती की, सत्य उन्हें समझना तुम,

कृण्वन्तों विश्वमार्यम का, फिर जय घोष लगाना तुम,

समझेंगे तुम्हरीं बातों को, चरण चूमने आएगें,

मानेगें विश्व गुरु तुमकों, श्रृधदा से शीश झुकायेंगे,

भारत मा की सीमाओं पर, फिर आखँ न उठने पाऐगी,

पजाँब, असम की घटनाऐं , स्व्त: स्व्त: मिट जाऐगीं,

स्वाभिमान की सुबह दोस्तों, बलिदानों से आऐगी ॥

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